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ॐ पातु नित्र्यां सिरसी पातु हृीं काँटादेशके



 

षडङ्गसहितो देवो नित्यं रक्षतु भैरवः ॥ १२॥

साधक कुबेर के जीवन की तरह जीता है और हर जगह विजयी होता है। साधक चिंताओं, दुर्घटनाओं और बीमारियों से मुक्त जीवन जीता है।

ತತ್ ಸರ್ವಂ ರಕ್ಷ ಮೇ ದೇವ ತ್ವಂ ಯತಃ ಸರ್ವರಕ್ಷಕಃ

सर्वपापक्षयं याति ग्रहणे भक्तवत्सले ॥ १२॥

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः । 

हंसबीजं पातु हृदि सोऽहं रक्षतु पादयोः ॥ १९॥

॥ ॐ ह्रीं here बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीम् ॥

 

 

।। इति रुद्रयामले महातन्त्रे महाकाल भैरव कवचं सम्पूर्णम् ।।

पातु मां बटुकोदेवो भैरवः सर्वकर्मसु।।

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